प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा प्रातः 10:00 बजे से किया जाता है, हजारो भक्तगण जुड़ते हैं और उसके अद्भुत धर्म धार्मिक विशेष ज्ञान से अभिभूत होते हैं, अपनी विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त करते हैं

                  नीलेश यादव 9406160466

प्रतिदिन  ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा प्रातः 10:00 बजे से किया जाता है, हजारो  भक्तगण जुड़ते हैं और उसके अद्भुत धर्म धार्मिक विशेष ज्ञान से अभिभूत होते हैं, अपनी विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त करते हैं



           आज की सत्संग परिचर्चा में श्रीमती केवरा साहू जी ने जिज्ञासा रखी की 

बाबा जी क्या हनुमान जी का पाठ महिलाओं के लिए वर्जित है,अगर है, तो क्यों? बताने की कृपा हो  बाबा जी ने बताया कि महिलाएं  हनुमान जी का पूजन पठन-पाठन अवश्य रूप से कर सकती हैं यह कहीं भी नहीं लिखा है,

 कि उनके लिए  हनुमान जी का पूजन पाठन वर्जित है, निसंकोच हनुमान चालीसा करना चाहिए हनुमान जी का सुंदरकांड करना चाहिए हनुमान कवच करना चाहिए

 हनुमान बाण करना चाहिए बस उनके विग्रह को स्पर्श नहीं करना चाहिए ना ही उनके मंदिर में प्रवेश करना चाहिए, उनका दूर से ही दर्शन करें और यह नियम केवल माताओं के लिए नहीं पुरुषों के लिए भी है


   रामफल जी ने  परिचर्चा में  बजरंग बाण की महिमा पर प्रकाश डालने की विनती की, इस विषय को स्पष्ट करती हुए बाबा जी ने बताया कि बजरंग बाण भी गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है जो हमें विभिन्न संकटों से बचाता है

 जिस प्रकार हनुमान चालीसा संकट मोचन हनुमान अष्टक को हम धारण करते हैं वैसे ही बजरंग बाण को भी धारण करना चाहिए, 

बजरंग बाण की बड़ी महिमा है इसमें चपलता चंचलता उद्दीपन तारण मारण संक्षिप्त प्रक्रिया की गई है इसी लिए कवच की तरह ही है जिसे अवश्य रूप से स्मरण एवं पठन-पाठन करना चाहिए



         रामेश्वर वर्मा जी ने जिज्ञासा रखी की 

संत असंतन्हि कै असि करनी।जिमि कुठार चंदन आचरनी।।काटइ परसु मलय सुनु भाई।निज गुन देइ सुगंध बसाई।। इस चौपाई पर प्रकाश डालने की कृपा हो गुरुवर।, 

इन पंक्तियों के भाव के स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि यहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने संत और असंत  के गुणों का विश्लेषण किया है

 कहीं पर उन्होंने कपास से इसकी तुलना की है तो कहीं पर असंत की तुलना जोक से की है जो स्वयं को भी कष्ट पहुंचाता है और दूसरों का भी नाश करता है 

उसी प्रकार यहां पर असंत की तुलना कुल्हाड़ी से की गई जिसका एक भाग लकड़ी का होता है और वह स्वयं को ही काटा जाता है वैसे ही संत की तुलना चंदन से की गई है

 जिसे नष्ट करने वाली कुल्हाड़ी का प्रहार उस पर  होता जाता है परंतु वह उस नष्ट करने वाली कुल्हाड़ी को भी सुगंधित करती जाती है इस प्रकार संत का व्यवहार होता है 

            पाठक परदेसी जी की जिज्ञासा प्रस्तुत हुई की 

बंधा पानी निर्मला, जो टुक गहरा हो य।

साधु जन बैठा भला, जो कुछ साधन हो य।।

महात्मा कबीर के इस दोहे पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवान, बाबाजी ने बताया कि महात्मा कबीर  ने बहुत ही गहन विचार करके इन पंक्तियों को रचा है,

 कहां जाता है कि यदि जल ठहर जाए तो वह दूषित एवं अस्वच्छ हो जाता है और बहता हुआ जल स्वच्छ और पवित्र होता है ऐसा संत के साथ भी व्यवहार किया जाता है 

कहा जाता है कि जो संत ठहरा हुआ है, वे पवित्र नहीं ,तो ऐसा कतई नहीं है क्योंकि ठहरा हुआ जल भी पवित्र हो सकता है जैसे कि हम कुए का जल देखते हैं क्योंकि इसके नीचे जल की धाराएं बहती रहती है 

इसके नीचे स्त्रोत होते हैं जिसके कारण यह जल भी स्वच्छ होता है और पवित्र होता है वैसे ही एक तपस्वी योगी एक स्थान पर रहते हुए भी महान तपस्वी होता है,

उसका हृदय भी गहन मनन चिंतन से ओतप्रोत होता है इसीलिए वह भी पवित्र होते हैं कोई आवश्यक नहीं कि घूमने फिरने वाले साधु सन्त ही पवित्र हृदय वाले होते हैं 

       परिचर्चा में रामफ़ल जी ने प्रश्न रखा की  माताओं को शंख बजाना चाहिए कि नहीं, बाबा जी ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए बताया कि कहीं कहीं तो यह भी कहा जाता है 

कि माताओं को नारियल नहीं फोड़ना  चाहिए लेकिन स्वार्थ वश तो हम कई जगह देखते हैं कि अगर वह माता उच्च पद पर स्थापित है 

तो उन्हें नारियल फोड़ने तक की अनुमति  प्रदान कर दी जाती है तो घर की माताये जो कि हमारे पूरे घर संसार को चलाती है,

 अनुमति क्यों नहीं दी जाती यह नियम केवल और केवल स्वार्थ वश ही बनाए गए हैं हमारे हिंदू धर्म की माताएं बहने भी अवश्य रूप से नारियल फोड़ सकती हैं और शंख भी बजा सकती है 

 इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ



 जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

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