नगर सहित अंचल में गणेशोत्सव हो या नवरात्रि का पर्व अधिकांश समिति की पहली रहने वाले रतन मूर्तिकार ने 6 मार्च दिन शनिवार को अंतिम ली और दुनियां से चल बसे।
अक्सर लोग कहते है कि उसके हांथ से बनी मूर्ति जीवंत लगती है,खैरागढ़ के कुम्हार पारा निवासी रतन ढीमर को कौन नही जानेगा, अंचल के रह वासियों ने जब भी श्री गणेश, मां दुर्गा ,मां सरस्वती जब भी रखेंगे तो ऐसा नहीं हुआ होगा जो रतन के घर ना गये हो ऐसा कोई नही होगा जो उन्हें ना पहचानता हो।58 वर्षीय रतन ढीमर बताते हैं 10-12 वर्ष की उम्र से मूर्ति बनाने सीखने लगे और घर मे बनाने लगे ,उनके गुरु अनंत जो नागपुर के रहने वाले और भगवती कुम्भकार दुर्ग के कलाकार से गुर सीखे, रतन के यहां बनी मूर्ति नागपुर,दुर्ग,राजनांदगांव,भिलाई, डोंगरगढ़, तक जाती है.कुम्हारों के बीच रहने के बावजूद इन्हें कभी उनके काम ने अपनी ओर नही खींचा, मूर्ति बनाने का काम साल भर चलता है महिलाएं भी पूरा काम करती है।अंतिम टच भी महिलाएं देती है।रतन अब कुछ नही कर पाता उनके काम का बीड़ा उनके मंझले बेटे उत्तम ही सम्भालते हैं। ढीमर परिवार से तालुकात होने से मछली पालन भी करते हैं.मूर्तिकार होने के साथ मिस्त्री का भी काम करते है,उन्होंने सहसपुर ,धरमपुरा,सोनेसरार,इतवारी बाज़ार नवांगाव चंडी मंदिर के निर्माण कार्य मे निःशुल्क सेवा की ,उनका कहना है कि सम्मान से कोई बुलाये तो मना नही करता,ईश्वर की कृपा से मेरा घर द्वार चल रहा है।वर्तमान में घर का ऐसा कोई कमरा ना होगा जहां मूर्ति ना हो। उन्हें व्यापारी संघ द्वारा 2014-15,नगर पालिका से 2016,महाकोशल परिषद द्वारा 2004 में सम्मान मिला है।उनके निधन से अंचल के लोगो में शोक की लहर है,लोगो ने मूर्तिकला के जादूगर को खोया है जो एक अपूर्णीय क्षति है |
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