शाहिद जगदेव-कर्पूरी संदेश यात्रा के 6 वे दिन तिलकामांझी की जयंती पर संकल्प सभा-विशद कुमार
कॉरपोरेट पक्षधर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के साथ एकजुटता में भागलपुर जिला में चल रहे 'शहीद जगदेव-कर्पूरी संदेश यात्रा' के 6वें दिन आज खरीक प्रखंड के सुरहा गांव में शहीद तिलका मांझी की जयंती के अवसर पर संकल्प सभा आयोजित की गई।
संकल्प सभा में मोदी सरकार द्वारा ब्राह्मणवादी-कॉरपोरेट गुलामी को नये सिरे से थोपने के खिलाफ जुझारु प्रतिरोध खड़ा करने का संकल्प लिया गया।
बता दें कि तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में तिलकपुर नामक गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था।
तिलका मांझी अंग्रेजों अन्याय और गुलामी के खिलाफ़ जंग छेड़ी। तिलका मांझी राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे। जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे।
उन्होंने 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ कलेक्टर अगस्ट्स क्लीवलैंड को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया जिसके कारण क्लीवलैंड बीमार पड़ा और अंततः उसकी मौत हो गई। क्लीवलैंड की मौत से पूरी ब्रिटिश हुकूमत सदमे में आ गई। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों में रहने वाला कोई आम.सा आदिवासी ऐसी हिमाकत कर सकता है।
साल 1771 से 1784 तक जंगल के इस बेटे ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया। उन्होंने कभी भी समर्पण नहीं किया न कभी झुके और न ही डरे। उन्होंने अंग्रेजों के साथ साथ स्थानीय सूदखोर ज़मींदारों के खिलाफ भी संघर्ष किया।
अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ऐसे में उन्होंने अपनी सबसे पुरानी नीति ष्फूट डालो और राज करो से काम लिया। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने समुदाय के लोगों को भड़काना और ललचाना शुरू कर दिया। उनका यह फ़रेब रंग लाया और तिलका के समुदाय से ही एक गद्दार ने उनके बारे में सूचना अंग्रेज़ों तक पहुंचाई।
सूचना मिलते ही रात के अँधेरे में अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने तिलका के ठिकाने पर हमला कर दिया। लेकिन किसी तरह वे बच निकले और उन्होंने पहाड़ियों में शरण लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ छापेमारी जारी रखी। ऐसे में अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुंचने वाली तमाम सहायता रोक दी।
इसकी वजह से तिलका मांझी को अन्न और पानी के अभाव में पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। कहा जाता है कि तिलका मांझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई थी।
संकल्प सभा को संबोधित करते हुए सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के गौतम कुमार प्रीतम और डॉ.अंजनी ने कहा कि तिलका मांझी ने केवल 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी की आर्थिक लूट व शोषणकारी व्यवस्था और सूदखोरों -महाजनों के शोषण के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था और इनके खिलाफ लड़ते हुए 35 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए थे।
अवसर पर बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) के अनुपम आशीष और निर्भय कुमार ने कहा कि एक बार फिर से देश की आजादी को इस देश की चुनी हुई हुकूमत गिरवी रख रही है। फिर से ब्राह्मणवादी गुलामी को मजबूत बनाया जा रहा है। देशी-विदेशी कंपनियों के लूट के राज को पुनर्स्थापित किया जा रहा है। हमें शहीद तिलका मांझी की विरासत को बुलंद करते हुए निर्णायक प्रतिरोध में उतरना होगा।
संकल्प सभा का संचालन करते हुए बहुजन स्टूडेन्ट्स यूनियन के सौरभ पासवान व पांडव शर्मा ने कहा कि देश को फिर गुलाम बनाने और देशी-विदेशी कंपनियों के हवाले करने की नीतियों के मामले में भाजपा नेतृत्व वाली सत्ताधारी एनडीए और कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी पार्टियों एक साथ खड़ी हैं। उन्होंने कहा कि विपक्ष का विरोध केवल कुर्सी हासिल करने तक सीमित है। इसलिए हमें नई राजनीति गढ़ना ही होगा।
मौके पर सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के चतुरी शर्मा, ज्योति देवी, खुशी कुमारी, जेडी कौशल, रीना देवी, कौशल्या देवी, कृष्णा देवी, मोहन, प्रशांत गौतम, ब्रजेश शर्मा, सत्यजीत कुमार, प्रिंस कुमार साह, गोपाल मंडल, उपेन्द्र साह, प्रसादी साह, मनीष कुमार शर्मा, व्यास ठाकुर सहित कई एक लोग उपस्थित रहे।
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