कार्ल मार्क्स : पुंजी मरा हुआ श्रम है जो पिशाच की तरह सिर्फ जीवित मजदूरों का खून चूसकर जिंदा रहता है, जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक मजदूरों को चूसता है - जन्मदिन पर



 कार्ल मार्क्स : पुंजी मरा हुआ श्रम है जो पिशाच की तरह सिर्फ जीवित मजदूरों का खून चूसकर जिंदा रहता है, जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक मजदूरों को चूसता है - जन्मदिन पर 



- क्या आप उनलोगों में से हैं जो अन्याय, गैर-बराबरी और शोषण को खत्म होते देखना चाहते हैं?

अगर हां, तो आपके लिए आज का दिन यानी 5 मई बहुत ही ख़ास है. इस दिन कार्ल मार्क्स का जन्म हुआ था और आज उनका 204 वां जन्मदिन है.

दुनिया की बेहतरी में उनके विचारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.


1. वो बच्चों को स्कूल भेजना चाहते थे, न कि काम पर

कई लोगों इस वाक्य को एक बयान के तौर पर ले सकते हैं पर साल 1848 में, जब कार्ल मार्क्स कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिख रहे थे, तब उन्होंने बाल श्रम का जिक्र किया था.


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के साल 2016 में जारी आंकड़ों के मुताबिक आज भी दुनिया में दस में से एक बच्चा बाल श्रमिक है.

बहुत सारे बच्चे कारखाना को छोड़कर स्कूल जा रहे हैं तो यह कार्ल मार्क्स की ही देन है.


2. वो चाहते थे कि आप अपनी ज़िंदगी के मालिक खुद हों


क्या आज आप दिन के 24 घंटे और सप्ताह के सात दिन काम करते हैं? काम के समय में लंच ब्रेक लेते हैं? एक उम्र के बाद आपको रिटायर होना और पेंशन उठाने का हक़ है?


अगर आपका जबाव हां में है तो आप कार्ल मार्क्स को धन्यवाद कह सकते हैं.

जमार्क्स चाहते थे कि हमारी ज़िंदगी पर हमारा खुद का अधिकार हो, हमारा जीना सबसे ऊपर हो. वो चाहते थे कि हम आज़ाद हो और हमारे अंदर सृजनात्मक क्षमता का विकास हो.


सैवेज कहते हैं, "असल में मार्क्स कहते हैं कि हमलोगों को वैसा जीवन जीना चाहिए जिसका मूल्यांकन काम से न हो. एक ऐसा जीवन जिसका मालिक हम खुद हो, जहां हम खुद यह तय कर सकें कि हमे कैसे जीना है. आज इसी सोच के साथ लोग जीना चाहते हैं."


3. वो चाहते थे कि हम अपने पसंद का काम करें

आपका काम आपको खुशी देता है जब आपको अपने मन का काम करने को मिलता है.


जो हम जीवन में चाहते हैं, या फिर तय करते हैं, उसमें रचनात्मक मौके मिले और हम उसका प्रदर्शन कर सके तो यह हमारे लिए अच्छा होता है.


लेकिन जब आप दुखी करने वाला काम करते हैं, जहां आपका मन नहीं लगता है तो आप निराश होते हैं.


ये शब्द किसी मोटिवेशनल गुरु के नहीं है बल्कि 19वीं शताब्दी के कार्ल मार्क्स ने कही थी.


साल 1844 में लिखी उनकी किताब में उन्होंने काम की संतुष्टि को इंसान की बेहतरी से जोड़कर देखा था. वो पहले शख़्स थे जिन्होंने इस तरह की बात पहली बार की थी.


4. वो चाहते थे कि हम भेदभाव का विरोध करें


अगर समाज में कोई व्यक्ति ग़लत है, अगर आप महसूस कर रहे हैं कि किसी के साथ अन्याय, भेदभाव या ग़लत हो रहा है, आप उसके ख़िलाफ़ विरोध करें. आप संगठित हों, आप प्रदर्शन करें और उस परिवर्तन को रोकने के लिए संघर्ष करें.


संगठित विरोध के कारण कई देशों की सामाजिक दशा बदली. रंग भेदभाव, समलैंगिकता और जाति आधारित भेदभाव के ख़िलाफ़ क़ानून बने.


5. उन्होंने सरकारों, बिजनेस घरानों और मीडिया के गठजोड़ पर नजर रखने को कहा

आपको कैसा लगेगा अगर सरकार और बड़े बिजनेस घराने सांठगांठ कर लें? क्या आप सुरक्षित महसूस करेंगे अगर गूगल चीन को आपकी सारी जानकारी दे दे?


कार्ल मार्क्स ने कुछ ऐसा ही महसूस किया था 19वीं शताब्दी में. हालांकि उस समय सोशल मीडिया नहीं था फिर भी वो पहले शख़्स थे जिन्होंने इस तरह के सांठगांठ की व्याख्या की थी.


ब्यूनस आर्यस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वैलेरिया वेघ वाइस कहते हैं, "उन्होंने उस समय सरकारों, बैंकों, व्यापारों और उपनिवेशीकरण के प्रमुख एजेंटों के बीच सांठगांठ का अध्ययन किया. वो उस समय से पीछे 15वीं शताब्दी तक पहुंचे."


वो आगे कहते हैं, "कार्ल मार्क्स ने मीडिया की ताक़त महसूस की थी. लोगों की सोच प्रभावित करने के लिए यह एक बेहतर माध्यम था. इन दिनों हम फेक़ न्यूज़ की बात करते हैं, लेकिन कार्ल मार्क्स ने इन सब के बारे में पहले ही बता दिया था."


वैलेरिया वेघ वाइस कहते हैं, "मार्क्स उस समय प्रकाशित लेखों का अध्ययन करते थे. वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गरीब लोगों के द्वारा किए गए अपराधों को ज्यादा जगह दी जाती थी. वहीं, राजनेताओं के अपराधों की ख़बर दबा दी जाती थी."

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